Monday, August 10, 2015

स्वतः

प्यार हो गया लापता, बस जिए जा रही हूँ
अपनी ही साँस को समझ नहीं पा रही हूँ।

खुदा के इस भव्य संसार में
ज़िंदा हूँ ज़िन्दगी की तलाश में
दिल और दिमाग को मिला रही हूँ
अपनी ही साँस को समझ नहीं पा रही हूँ।

एक जंग छेड़ दी है मैंने
भूलकर वो अनमोल सपने
खुद को ही हरा नहीं पा रही हूँ
अपनी ही साँस को समझ नहीं पा रही हूँ।

सहारा दिया अपनों ने
अपना बनाया परायों ने
फिर भी हारी जा रही हूँ
अपनी ही साँस को समझ नहीं पा रही हूँ।

खुद को समझने की जारी है कोशिश
मगर ख़त्म नहीं होती दूसरों की ख्वाहिश
आदतों की भोझ तले दबी जा रही हूँ
अपनी ही साँस को समझ नहीं पा रही हूँ।

कभी तेज़ तो कभी धीमी
क्यों रहती है वो सहमी सहमी ?
साँसों की लय पर काबू पा रही हूँ
अपनी ही साँस को समझ नहीं पा रही हूँ।

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